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Showing posts from November, 2021

आव आव विंध्य मइया बैठ अँगनइया

भजन 9  आव आव विंध्य मइया बैठ अँगनइया , देब सतरंगिया बिछाई हो  चुनी चुनी फुलवा गुलाब जूही बेला, देब चरनिया चढ़ाई हो  गइया के घियना से होमिया करइबे, धुवना आकाश में जाइ हो  हरी - हरी निमिया पे डरिबे झुलनवा, देबे सातो बहिनी झुलाई हो  उमड़ी-घुमड़ि मेघ बरसे अंगनवा, निमिया मउर झरि जाइ हो  रात दिन माई हम गोहार लगाई, माया दिहेसि भरमाई हो  धुरिया बनाई लेतु रहिया के अपने, जीवन सफल हो जाई हो 

रट ले राम नाम मोर मनवा

भजन 8  रट ले राम नाम मोर मनवा, तनवा फिर ना पइहो रे  पांच तत्त्व का यह तन तोरा ढेरो दोष समाया  आना जाना सब जग जाना तू भी जइहो रे  रट   ले राम ....... माया मोह मतलबी इहवा फिरे बहुत ठगरहवा  पल भर में पूजी लूट लइहे दूरी रहिहो रे  रट ले राम ...... नेति धरम के नइया भइया सबसे बड़ा खेवइया  भवसागर से पार उतरिहे हरि से नेह लगइहो 

जल जाये जिह्वा पापिनी राम के बिना

 भजन 7 राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट  अन्त समय पछतायेगा , जब तन जइहे छूट  जल जाये जिह्वा पापिनी राम के बिना  राम के बिना हो भइया - श्याम के बिना  जल जाये ......... क्षत्रि आन बिनु विप्र ज्ञान बिनु घर संतान बिना  देह प्राण बिनु हाथ कान बिनु भोजन मन बिना  मोर काहे बेकार नाचना उ घनश्याम बिना  जल जाये ........ पंक्षी पंख बिनु, बिक्षु डंक बिनु ,आरती शंख बिना गणित अंक बिनु, कमल पंख बिनु , निशा मयंक बिना  व्यर्थ भ्रमण, चिन्तन भाषण नहीं, अच्छे काम बिना  जल जाये .......  प्रिया कंत बिनु , मठ महंथ बिनु, हाथी दन्त बिना ग्राम पञ्च बिनु, ऋतु बसंत बिनु , आदि अंत बिना  नाम बिना नर ऐसे जैसे, अश्व लगाम बिना   जल जाये ........

जो नाम का प्रताप है

 भजन 6  जो नाम का प्रताप है , तम्हें याद हो कि न याद हो  जब दैत्य चाबुक मरिया , प्रह्लाद नाम उचारिया  नख से असुर को बिदरिया , तुम्हे याद हो कि न याद हो  जो नाम का प्रताप ........ ध्रुव को पिता ने निकाल दिया , हरी नाम में मन ला दिया  उसे अचल धाम दिला दिया , तुम्हे याद हो कि न याद हो  जो नाम का प्रताप ......... गजराज पे विपदा परी , मन में जपा जो हरी हरी  ग्राह मार के मुक्ति करी ,तुम्हें  याद हो कि न याद हो  जो नाम का प्रताप ....... दौपदी की लाज उतरिया , तब कृष्ण कृष्ण पुकारिया  ब्रह्मानंद चीय बढ़ा दिया , तुम्हे याद हो कि न याद हो  जो नाम का प्रताप ......

मत कर तू अभिमान रे बन्दे

भजन 5  मत कर तू अभिमान रे बन्दे, झूठी तेरी शान रे, मत कर तू अभिमान मत कर तू अभिमान रे बन्दे, झूठी तेरी शान रे, मत कर तू अभिमान तेरे जैसे लाखो आये, लाखो इस माटी ने खाये तेरे जैसे लाखो आये, लाखो इस माटी ने खाये रहा न नाम निशान रे  बन्दे मत कर तू अभिमान मत कर तू अभिमान रे बन्दे , झूठी तेरी शान रे, मत कर तू अभिमान झूठी माया झूठी काया, वो तेरा जो हरिगुण गाया झूठी माया झूठी काया, वो तेरा जो हरिगुण गाया जप ले हरी का नाम ओ बन्दे, मत कर तू अभिमान मत कर तू अभिमान रे बन्दे, झूठी तेरी शान रे, मत कर तू अभिमान माया का अन्धकार निराला, बाहर उज्जला भीतर काला माया का अन्धकार निराला, बाहर उज्जला भीतर काला इसको तु पेहचान रे बन्दे, मत कर तू अभिमान मत कर तू अभिमान रे बन्दे झूठी तेरी शान रे मत कर तू अभिमान तेर पास हैं हीरे मोती, मेरे मन मंदिर में ज्योति तेर पास हैं हीरे मोती मेरे मन मंदिर में ज्योति कौन हुवा धनवान रे बन्दे मत कर तू अभिमान मत कर तू अभिमान रे बन्दे झूठी तेरी शान रे मत कर तू अभिमान मत कर तू अभिमान रे बन्दे झूठी तेरी शान रे मत कर तू अभिमान मत कर तू अभिमान, मत कर तू अभिमान

गुरु बिनु कौन बतावे बाट

 भजन 4  गुरु को मानुष जानते ते नर कहिये अंध  होय दुःखी संसार में आगे जम का फन्द   गुरु नारायण रूप है गुरु ज्ञान को घाट  सतगुरु वचन प्रताप सो मन के मिटे उचाट  गुरु बिनु कौन बतावे बाट  भ्रान्ति पहाड़ी नदियां बिच में -2  अहंकार की लात -२ , गुरु बिनु कौन ........ काम क्रोध दो परबत ठाड़े  -2  लोभ चोर संघात गुरु बिनु कौन ..... मद मत्सर का मेघा बरसत-2  माया पवन बह ठाट , गुरु बिनु कौन  .....  कहत कबीर -4  सुनो भाई साधो  क्यों तरना एह घाट , गुरु बिनु कौन....... 

अवसर बार बार नहीं आवे

भजन 3  जागो लोगो मत सोवो , ना करो नींद से प्यार  जैसा सपना रैन का, ऐसा यह संसार  अवसर बार - बार नहीं आवे - 2  जो चाहो करि लेहो भलाई  जनम - जनम सुख पावै -2 ,  अवसर बार - बार .....  तन मन धन में नहीं कछु अपना  छाड़ि पलक में जावें -2 ,  अवसर बार बार ........ तन छूटे धन कौन काम के  कृपिन काहे को कहावै-2  अवसर बार -बार  .....  सुमिरन भजन करौ साहेब को,  जासे जीव सुख पावें  अवसर बार बार ........ कहै कबीर पग धरे पंथ पर जम के गण न सतावे  अवसर बार बार ........

मन फूला फूला फिरे जगत में कैसा नाता रे।

 भजन 2  कैसा नाता रे, हो मनवा कैसा नाता रे , मन फूला फूला फिरे जगत में कैसा नाता रे।  माता कहे यह पुत्र हमारा , बहन कहे बीर मेरा रे  भाई कहे यह भुजा हमारी नारी कहे नर मेरा रे  स्वारथ का सब घर परिवारा, सत्य वेद का नारा रे  जब मौत ने आकर उसे पुकारा ,छोड़ चला घर द्वारा रे  हो कैसा नाता रे ....... अब पेट पकड़ कर माता रोवे , बाह पकड़ के भाई रे  लपटि - झपटि के तिरिया रोवे , हंस अकेला जाइ रे  हो कैसा नाता .......  जब लग जीवे माता रोवे बहन रोवे दस मासा रे  तेरह दिन तक तिरिया रोवे फेर करे घर वासा रे  हो कैसा नाता रे ....... चार जना चर गजी मगायो, चढ़ा काठ की घोड़ी रे  चारो कोने आग लगा दी, फूंक दिया जैसे होरी रे  हो कैसा नाता रे ....... हाड़ जले जैसे जंगल लकड़ी, केश जले जैसे घासा रे  सोना ऐसी काया जल रही कोई न आवे पासा रे  हो कैसा नाता रे ....... झूठे मोह ममता में मूरख, बाधा चौरासी पासा रे  कहे कबीर अब सुनो भक्त जन छोड़ो जग की आसा रे 

अरे मन समझ समझ पग धरिये

भजन 1  अरे मन समझ समझ पग धरिये  अरे मन इस जग में नहीं अपना कोई परछाई सो डरिये  दौलत दुनियाँ कुटुम्ब कबीला इनसो नेह कबहु न करिये  राम नाम सुख धाम जगत में सुमिरन सो भाव तरिये  अरे मन समझ समझ पग धरिये